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पूजा और प्रसाद वितरण
इस शनि जयंती शनि देव की कृपा से अपने जीवन को करें कष्टमुक्त और उन्नति से युक्त ।
प्रसाद वितरण
यदि जन्मकुंडली में शनि की स्थिति प्रतिकूल हो, तो व्यक्ति जीवन भर संघर्ष करता है और सफलता उससे कोसों दूर रहती है। विशेषतः जब शनि की तृतीय एवं दशम दृष्टि अनुकूल भावों पर न हो, तो परिणाम अत्यंत कष्टदायक हो सकते हैं।
इस पावन शनि जयंती पर की गई पूजा से, शनि देव की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है, और जीवन में स्थिरता एवं समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
जब कर्मफलदाता शनि रुष्ट होते हैं, तो श्रेष्ठ कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। जैसे राजा विक्रमादित्य को शनि की कुदृष्टि से कारागार जाना पड़ा था और उन पर चोरी का झूठा दोष लगा था। किंतु शनि की अर्चना से उन्हें पुनः राज्य प्राप्त हुआ।
इसी प्रकार, इस पूजा में यदि वेदमंत्रों के साथ सरसों का तेल अर्पित किया जाए, तो व्यापारिक बाधाएँ दूर होती हैं और अत्यंत लाभ की प्राप्ति होती है।
शनि जयंती पर पूजन से झूठे आरोप, कानूनी पेंच और सामाजिक विवाद स्वतः शांत होते हैं। साथ ही, नशे व बुरी संगत से छुटकारा प्राप्त होता है।
इस पूजन से साढ़ेसाती और अढ़ैया जैसे भीषण कालों के प्रभाव शांति को प्राप्त करते हैं। साथ ही, गोचर में शनि की स्थिति शुभ फल देने लगती है।
शनि जयंती के दिन, कोकिलावन शनि धाम में होगी विशेष पूजा। इस विशेष अनुष्ठान में सूर्यपुत्र भगवान शनि की वेदविधि से पूजन संपन्न किया जाएगा। वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ उनके प्रिय द्रव्यों का अर्पण किया जाएगा, जिससे भक्तों की अभीष्ट से भी अधिक श्रेष्ठ मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
भगवान शनि न्याय के देवता माने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इनकी तीन दृष्टियों का वर्णन है—सप्तमी दृष्टि, तृतीय दृष्टि एवं दशम दृष्टि, जिनमें तृतीय और दशम दृष्टि को विशेष रूप से विध्वंसक माना गया है।
इस पूजन में भगवान शनि की अर्चना सरसों के तेल, काले वस्त्र, तिल एवं विविध तांत्रिक द्रव्यों से की जाएगी, जिससे उनके कुप्रभावों से रक्षा हो और कृपा की प्राप्ति हो।
विशेष पूजन सामग्री एवं उनके लाभ ~
कोकिलावन शनि धाम, मथुरा का एक ऐसा चमत्कारी स्थल है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं शनि देव को स्थान प्रदान किया था। कथा अनुसार, जब श्रीकृष्ण जन्मे, तो समस्त देवता दर्शन हेतु आए। परंतु माता यशोदा ने शनि देव को लाला के दर्शन से वंचित किया, जिससे वे अत्यंत व्यथित हुए।
तब उन्होंने कोकिलावन में कठोर तप किया और श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर कहा—
“हे शनि! तुम यहीं निवास करो और संसार के समस्त पीड़ितों को अपनी कृपा प्रदान करो।”
तभी से यह धाम शनि की साढ़ेसाती, अढ़ैया व अन्य पीड़ाओं के निवारण हेतु अत्यंत चमत्कारी माना जाता है।