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श्री कुबेर महायज्ञ व्यक्ति के जीवन में निरंतर धनागमन सुनिश्चित करता है। अचानक होने वाले खर्च, घाटा या कर्ज जैसी समस्याएं दूर होती हैं।
जो लोग लंबे समय से प्रमोशन का इंतज़ार कर रहे हैं, या अपने व्यवसाय में नए अवसर चाहते हैं, उनके लिए यह यज्ञ वरदान सिद्ध हो सकता है।
रुद्राभिषेक में शामिल ऋणमोचक मंत्र और अभिषेक से वह शक्ति जाग्रत होती है जो आर्थिक बोझ को समाप्त कर जीवन में स्वतंत्रता लाती है।
जब धन और शिवत्व दोनों एक साथ प्राप्त होते हैं, तब न केवल भौतिक समृद्धि आती है, बल्कि परिवार में शांति, संतुलन और सुख की भी वृद्धि होती है।
इसी दिव्य तिथि पर जब श्री लक्ष्मी-कुबेर महायज्ञ और भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है, तब यह यज्ञ साधारण नहीं रह जाता — यह बन जाता है एक अत्यंत शक्तिशाली साधन अपने जीवन को समृद्धि, संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने का।
यह पूजा क्यों करें?
आज के समय में जब आर्थिक अस्थिरता, प्रतिस्पर्धा, कर्ज और मानसिक तनाव आम हो चले हैं, ऐसे में एक दिव्य और प्राचीन समाधान है — श्री लक्ष्मी-कुबेर यज्ञ और रुद्राभिषेक। यह यज्ञ उन सभी के लिए अत्यंत फलदायी है:
जो लंबे समय से नौकरी में प्रमोशन या सफलता की प्रतीक्षा कर रहे हैं
जो व्यापार में निरंतर घाटे या रुकावटों से जूझ रहे हैं
जिन्हें ऋणमुक्ति, आर्थिक स्थिरता, और नई आय के स्रोतों की आवश्यकता है
जो मानसिक तनाव, असुरक्षा और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति चाहते हैं
जो जीवन में मनोकामना सिद्धि, शांति और सुख की तलाश में हैं
यह यज्ञ माता लक्ष्मी (धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी), श्री कुबेर (देवताओं के कोषाध्यक्ष और रक्षक), और भगवान शिव (विनाश और कल्याण के अधिपति) की कृपा को एकसाथ प्राप्त करने का दुर्लभ अवसर प्रदान करता है।
पूजा की प्रक्रिया
पूजा को परंपरागत वैदिक और तांत्रिक परंपराओं के अनुसार विशेष रूप से प्रशिक्षित आचार्यों द्वारा संपन्न किया जाता है। इसकी विधि अत्यंत प्राचीन और सिद्ध है:
व्यक्तिगत संकल्प – साधक का नाम, गोत्र और इच्छित फल के साथ पूजा का संकल्प लिया जाता है।
मंत्रोच्चारण और हवन – श्री सूक्त, कुबेर स्तोत्र, लक्ष्मी बीज मंत्र, रुद्राष्टाध्यायी जैसे शक्तिशाली मंत्रों के माध्यम से देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है।
कुबेर यज्ञ – तिल, घी, चावल और दुर्लभ जड़ी-बूटियों से विशेष हवन किया जाता है, जो लक्ष्मी-कुबेर तत्त्व को जागृत करता है।
रुद्राभिषेक – बेलपत्र, पंचामृत, गंगाजल और पवित्र औषधियों से भगवान शिव का अभिषेक कर मन, तन और आत्मा की शुद्धि की जाती है।
पूर्णाहुति एवं आशीर्वचन – हवन की पूर्णाहुति के पश्चात विशेष कृपा आह्वान किया जाता है, जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
यह यज्ञ केवल धन प्राप्ति नहीं, एक संपूर्ण जीवन परिवर्तन है
अक्षय तृतीया पर इस यज्ञ में भाग लेना केवल आर्थिक लाभ या प्रमोशन की चाह तक सीमित नहीं है। यह एक आंतरिक रूपांतरण की प्रक्रिया है, जो आत्मा को शुद्ध करती है, जीवन में आत्मविश्वास और स्पष्टता लाती है, और साधक को ईश्वरीय कृपा का पात्र बनाती है।
यह यज्ञ न केवल बाह्य समृद्धि देता है, बल्कि भीतर की रिक्तता को भी भरता है — जिससे व्यक्ति जीवन में सच्चे अर्थों में सफल होता है।
अक्षय तृतीया का महत्व: अक्षय तृतीया, जिसे वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ और सिद्ध मुहूर्तों में से एक मानी जाती है। “अक्षय” शब्द का अर्थ होता है — जिसका कभी क्षय न हो। यह तिथि अपने आप में इतनी पवित्र मानी जाती है कि इस दिन किए गए किसी भी शुभ कार्य, दान, जप, तप, स्नान, हवन या पूजा का पुण्य फल अनंतगुना होकर स्थायी रूप से फलदायी होता है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी, भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, और भगवान विष्णु ने नर-नारायण अवतार लिया था। महाभारत काल में पांडवों को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी, जिससे भोजन कभी समाप्त नहीं होता था। इसीलिए, इस दिन की गई लक्ष्मी-कुबेर पूजा न केवल तत्काल धन-संपत्ति का द्वार खोलती है, बल्कि आने वाले समय में भी उसका पुण्यफल अक्षय बना रहता है।
कुबेर पोटली का रहस्य और उसका महत्व:
श्री कुबेर पोटली, इस विशेष यज्ञ का एक शुभ और दिव्य प्रतीक होती है। यह पोटली स्वर्ण, चांदी, धातु, चावल, हल्दी, कमलगट्टा, कौड़ी, गोमती चक्र, चक्रकार मुद्रा और विशेष कुबेर यंत्र से तैयार की जाती है। इसे यज्ञ के अंत में विशेष मंत्रों द्वारा सिद्ध किया जाता है और फिर इसे घर, तिजोरी या दुकान में रखने से धनवृद्धि, कारोबार में लाभ और आर्थिक स्थिरता का वरदान प्राप्त होता है।मान्यता है कि सिद्ध कुबेर पोटली घर में माँ लक्ष्मी और कुबेर देवता की कृपा को स्थायी रूप से आकर्षित करती है। यह न केवल धन का संचार करती है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा, दरिद्रता और असफलताओं को भी दूर करती है। कुबेर पोटली को रखना, स्वयं एक जीवंत यंत्र स्थापित करने के समान है जो हर दिशा में वैभव और समृद्धि को खींचता है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम को देवों की भूमि कहा जाता है। यह क्षेत्र भगवान शिव के प्राचीन 124 मंदिरों का समूह है, जो हजारों वर्षों से ध्यान, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र रहा है।
इन्हीं मंदिरों में एक अत्यंत विशिष्ट, रहस्यमयी और शक्तिशाली मंदिर है — श्री कुबेर महादेव मंदिर, जो कि भगवान शिव और धनाधिपति श्री कुबेर को समर्पित है। यह एकमात्र सिद्ध पीठ है जहाँ कुबेर और शिव एक साथ पूजित होते हैं।
मंदिर की विशेषताएं:कुबेर की राजधानी बताया गया है।
श्री यंत्र पर आधारित संरचना : मंदिर की वास्तुशैली रहस्यमय श्री यंत्र पर आधारित है, जो लक्ष्मी तंत्र और कुबेर अनुष्ठानों में सर्वोच्च माना जाता है।
स्थान का वैभव : यह मंदिर ठीक उस पवित्र क्षेत्र में स्थित है जिसे पौराणिक कथाओं में अलकापुरी — श्री दुर्लभ ऊर्जा क्षेत्र: मंदिर का गर्भगृह एक प्राचीन ऊर्जा केंद्र है, जहां साधकों को गहन ध्यान एवं सिद्धियों की अनुभूति होती है।
दसों दिशाओं से रक्षित : यह स्थल दस दिशाओं से तांत्रिक रूप से संरक्षित है, जिससे यहाँ की पूजा अत्यधिक प्रभावशाली और शीघ्र फलदायक मानी जाती है।
Via Veda एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो आपको धार्मिक सेवाओं का लाभ उठाने का अवसर देता है। इसके माध्यम से आप चढ़ावा सेवा, गौसेवा, अन्नदान, और मंदिरों के पुनर्निर्माण में योगदान दे सकते हैं। साथ ही, आप अनुभवी ज्योतिषियों से परामर्श कर कुंडली, अंक ज्योतिष और वास्तु जैसी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।
पूजा के दिन मानसिक और शारीरिक शुद्धता का ध्यान रखें, ब्रह्मचर्य का पालन करें और इष्टदेव का स्मरण करें। पूजा की प्रक्रिया के बारे में आपको पहले से सूचित किया जाएगा, और पूजा के बाद इसका रिकॉर्डेड वीडियो आपको भेजा जाएगा।
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फलाइन और ऑनलाइन पूजा की प्रक्रिया में ज्यादा अंतर नहीं है। दोनों में ही पुजारी आपके नाम और गोत्र से अनुष्ठान करते हैं। अंतर यह है कि ऑफलाइन पूजा में आपको स्वयं मंदिर जाना पड़ता है, जबकि ऑनलाइन पूजा में आप घर बैठे यह सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। पूजा का रिकॉर्डेड वीडियो आपको बाद में भेज दिया जाएगा।
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चढ़ावा सेवा में आप भारत के प्राचीन मंदिरो, शक्तिपीठो में अपने नाम से चढ़ावा/ श्रृंगार/ भोग आदि अर्पित कर सकते है।